जीवन में चढ़ते-घटते
प्रपंच का बवाल
आज तड़के दर्शन हो गये
फिर से एक बवाल के
चीख़ती नज़र आई
रमा बहू सास के तीखे प्रहार से।
कर अनसुनी क़दम ढोकर
बढ़ गया मैं
सू गली का चौराहा
किचकिच का शोर
इकलौता नल
कहें नो मोर..... ,नो मोर......
यहां भी थी
एक जंग की तैयारी
होने वाली थी
बवाल की मारा-मारी
कौन किसकी सुने
हर नारी थी सब पे भारी।
बढ़ चला फिर आगे मैं
जा बैठा कोने वाली बैंच पर
ले ही रहा था राहत की सांस
उफ़!
यहां भी हो गया प्रेमी जोड़ों में
बवाल...!
सोलहवां सावन
प्यार में डूबा मन
प्रेमी न समझे तो
दिल के टूटने का
बड़ा बवाल ....!
बवाल कहां नहीं है
बस में सीट न मिले तो बवाल
पति पसंद की साड़ी न दिलाए
तो बवाल
बच्चों की न सुनो तो बवाल
पूरी सोसायटी ही बवाल है।
कुछ होते हैं
हाई-प्रोफाइल बवाल
राजनीति की खुली गलियों में
जूतम-पैज़ार का बवाल
होंठों को सिलते
तानाशाह के रुतबे का बवाल
जो अक्सर कर देते हैं
रियाया को हलाल
कुछ मेरे मन में भी
व्याप्त हैं बवाल
इंसान हूँ
बात इंसानियत की करता हूँ
गर बना रहना चाहूँ इंसान
तो करूँ बवाल ?
पर वास्तविकता क्या है
इस बवाल की
ये सारा जीवन-तंत्र ही बवाल है
खो गयी शान्ति मन की
दौड़ रहा हर इंसान यहां
युवा दौड़ लगाए नौकरी की
ग़रीब जुगाड़ करे ज़रुरतों की
वास्तव में ये सबसे बड़ा है सवाल
सही मायने में
यह भी है एक बवाल ...... !
#अनीता लागुरी ( अनु )
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को "देश मेरा जान मेरी" (चर्चा अंक - 3588) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब ,लाज़बाब अभिव्यक्ति अनु जी
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