बुधवार, 8 नवंबर 2017

बस्ते में इन्हेलर ....!

सांसों  पे  मेरी 
पाबंदियां मत लगाओ ..|
मेरी इन मासूम आखों  में
सवाल  खड़े  मत  करो
क्या ये मेरा भविष्य है?
आँखों में  डर
मुँह  पर  मास्क
बस्ते में  इन्हेलर ....!

ये  सांसें  मेरी हैं .....
इन्हें  ज़हर देकर मत  खरीदो.....
मुझे भी हक़ है
अपने हिस्से की  ज़मीन को  छूने  का
लालच में अपनी... 
मेरी क़ब्रगाह मत खोदो....|
  #अनु

गुरुवार, 2 नवंबर 2017

तू मेरी ज़िंदगी की खुली किताब हो गई.....


तू मेरी ज़िंदगी की खुली किताब हो गई.....
शहरों के शहर....
तमाम गुल हो गए....!
तेरे ......आने से ....!
ऐ परी!
मिज़ाज-ए-मौसम की तपिश मखमली हो गई
कभी धूप-सी खिली
तो कभी दिसंबर की सर्द शाम हो गई।
तुझे सोचकर सोने की हर कोशिश मेरी
मुझसे लिपटकर अब ख़्वाब हो गई
हर शै को है
तेरी ख़ुशबुओं से राब्ता ऐ परी!
तेरे आने से चाँद भी
अब शरमा गया ...!
तुम तक पहुँचने की हर चाह मेरी
यूँ ही शबनमी नूर हो गई
तुम मेरी तन्हाइयों के बादल हो
जो तुम्हारे हँसने से ख़फ़ा हो गए
शहरों के शहर ...
तमाम गुल हो गए...!
तेरी निगाहों से वाबस्ता
मेरे फ़साने आम हो गए
शहरों के शहर......
तमाम गुल हो गए...!
तेरे आने से ऐ परी!
मेरी छुपी ख़ामोशियों के पंख उग आये
मैं इश्क़-इश्क़ करता रहा और
तू मेरी ज़िंदगी की खुली किताब हो गई...... !
#अनु

बुधवार, 1 नवंबर 2017

प्याज संग आधी रोटी,

प्याज़  रोटी और कविता

कभी खाई है प्याज़ संग रोटी

और पिया है आधे  भरे गिलास का पानी

जब अतड़ियाँ  दहाडें  मार मारकर रोती हैं

और एक नंगा बदन करवट बदल बदलकर

चादर ताने सो जाता है

न चाहते हुए भी

मरी हुई आँखों से रोटी के सपने देखता है

और कोसता है  ख़ुद  को  मर जाऊँ या मार दो मुझे

खाली बर्तन, टूटी छत और दरवाज़ों से आती

हिचकी... भूख और बेरोज़गारी की

और पल-पल खिड़की से झांकता वो काला यमराज

कभी लगा नहीं अपनी जिंदगी के 35 वें साल में

एक ऐसा भी वक़्त आएगा

मांगी हुई रोटी के साथ आधा टुकड़ा प्याज़ का खाऊँगा

साथ में खड़ी है नंगों की फ़ौज

और मुँह  चिढ़ाती नमक की ख़ाली डेलियाँ

सिसकती जवानी ख़त्म हो गई संग चूहों की दौड़ में

हाँ  मैंने खाया  है प्याज़  संग रोटी का टुकड़ा

नंगी अतड़ियों को ओढ़कर

और लगा कहानी लिखने अपनी

कुछ सच और कुछ  झूठ जोड़कर

पर मैं जानता हूँ मेरा दर्द, मेरी भूख

तुम्हारे  मेरी कविता पढ़ने तक ही होगी

जगन्नाथ रद्दी में फेंक चल दोगे आधे प्याज़  की तरह

और मैं किसी रात मर जाऊँगा

इस टूटी झोपड़ी के अंदर

अपनी सड़ी हुई कविता के साथ

#अनु🍁🍁🍁🍁

मेरे बाबा

"तू  है  हत्यारा" .

बाबा

जब हम छोटे थे........!

तब भी

कभी कहा नहीं  ..!

आपसे कि

मुझे ला दो वो "छुकछुक"

रेलगाड़ी.........!!!!!!!

कभी नहीं  मांगी

वो  "चॉकलेट"  महँगी !

वो "जींस" भी नहीं  चाही ...

जिसके सपने अक्सर  देखे  मैंने..!

खुश रहा अक्सर उसी में .........!

जो आपने हमें  दिया ,

जो माँ  ने हमें  दिया,

कभी फैलाया हाथ नहीं ......!!

कभी न की  ज़िद हमने....!!!

सदैव रखा ख़ुद  को ..,

मज़बूत निगाहों  में  आपकी...!

क्योंकि   आप हमारे जीवन संबल थे बाबा....!

माना अब  हूँ 

बेरोज़गार मैं ...!

जेबें  हैं   ख़ाली  मेरी ... हाथों  में  हैं  आपके सपने सारे.....!!!

पर हौसला आप थे मेरे..!

मेरी नाकामियाँ  आपको

झुका नहीं  सकतीं ....!

यह  सोचकर बढ़ता रहा

जीवन पथ पर अपने

पर आज क्यों  कमज़ोर ,अहसाय

बने बैठे हो ...!

क्यों  ख़ाली ज़मीन पर लेटे हो...?

याद है  मुझे,

मैंने खाई थीं  रोटियां चार.,

आपने आधी भी नहीं ....!

पर फिर भी उठाकर कांधों  पर ......

दौड़ लगाई स्कूल तक

धूप हो या छांव....!

आपकी मज़बूत परछाई ने हमेशा मुझे बचाकर रखा....!

दीपावली के हों  पटाखे

या होली के रंग

हर चीज़  से नवाजा बचपन को मेरे...!

जब गिर पड़ा था सीढ़ियों से मैं ...,

लगा  था  प्लास्टर पैरों  पर...!

मेरी लाठी बन उठाए फिरते थे मुझे,

कभी स्कूल  तो कभी धर...!

फिर क्यों   बाबा,

कब जवाब दे गई हिम्मत आपकी,

नाकामी को मेरी सह नहीं  पाए...,

लगा के फांसी अरमानों  की

क्यों फंदे  पर झूल गये..?

एक विश्वास  तो किया होता बेटे पर अपने .....!

कहा तो होता चल ..,

आज  नहीं  तो कल ही सही

पर नहीं  कहा कुछ भी ...

कायर बन लगा ली फांसी....!!!!!!!!

अब....

कैसे उठाऊँ  अर्थी  को

आपकी....?

कांधों  पर आपका  विश्वास ,

आपका स्नेह घेरा बनाए बैठा है

सारे कहते हैं  मुझसे......

"तू  है  हत्यारा" ....!!!

अपने बाबा का.......

तुझे हक़  नहीं  अर्थी  को कांधा  देने का ........ 

#अनु🌺🍂🍁

वो पगली,

,,🍂🍁🍀

अक्सर गली के चौराहे पर.....!

वो घूरती नीली-सी नज़र

ठिठका जाती कदमों को मेरे....!

एक पल को जड़ हो जाता मैं....

और लगता चोरी से.....

निहारने उसे,

वो बिखरे बालों वाली

फटे चिथड़ों  से,

तन को लपेटने वाली....!

यौवन की ओर अग्रसर

वह पगली मुझे...!

अनायास ही खींच लेती..अपनी ओर.!

और मैं बावरा,

पल में  उसके रोने,

पल में  उसके हँसने की

जादूगरी को देख..!

मन ही मन मुस्करा देता

और पास जाकर पूछ बैठता

रोटी खाई तुमने...?

क्या तुम्हें भूख लग रही है..?

और वो........

न जाने कौन सी  अक्षुण

अनुभुति लिए कहती मुझसे...

धत्त बाबू...!!!

#अनु 🌺🍂🍂🍁

तापस


मेरी डायरियों के पन्नों में,
रिक्तता शेष नहीं अब,
हर शुं तेरी बातों का
सहरा है..!
कहाँ  डालूं इन शब्दों की पाबंदियाँ
हर पन्ने में अक्स तुम्हारा
गहरा है...!
वो टुकड़ा बादल का,
वो नन्हीं-सी धूप सुनहरी,
वो आँगन  गीला-सा,
हर अल्फ़ाज़ यहां पीले हैं।
तलाशती फिर रही हूँ ..
शायद कोई तो रिक्त होगा
वो मेरा नारंग रंग....!
तुम्हें पढ़ने की मेरी अविरल कोशिश..!
और मेरे शब्दों की टूटती लय..!
वो मेरी मौन मुखर मुस्कान..
कैसे समाऊँ  पन्नों में ..?
हर शुं तेरी यादों  का सहरा है.........
तापस..!!!
कहाँ  बिखेरुं इन शब्दों की कृतियाँ.....?
यहाँ  रिक्तता शेष  नहीं  अब.....!
तुम्हारी मृदुला
#अनु

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

Aaj Ka Ravan


Today's Ravan.!
How is Ravan ...???
Who is Ravan ..??
Does he have 10 heads...?
Does he have a huge castle ..?
Does he have  the army of monster..??
No ..no...no..
This is not that Ravan ,
This is modern Ravan,
This is made from system Ravan,
He beat his wife brutally
This Ravan murders children..... !
Rape girls.....!!!!
Did not sees the age ..!
Only sees the skin of girls..!!
Today's Ravan is violent instinct Ravan.
He is heartless person.....
He has no sympathy for the injured person ..who falls on the road...
He is spreading poverty,unemployment, helplessness.
Many more things.....
This Ravan is inside the people
What he will thinking ...
We people  didn't understand this...
This Ravan is just around us...
Our society, our home, among our own people ....!!
I think...??
That old Ravan was good..!!
Bcz.. He like only one lady
Bt today's Ravan.....
Do not know when...and where he attack us..
Today's Ravan will be bigger and  bigger ..and more bigger.....
@annu ann Laguri