"तू है हत्यारा" .
बाबा
जब हम छोटे थे........!
तब भी
कभी कहा नहीं ..!
आपसे कि
मुझे ला दो वो "छुकछुक"
रेलगाड़ी.........!!!!!!!
कभी नहीं मांगी
वो "चॉकलेट" महँगी !
वो "जींस" भी नहीं चाही ...
जिसके सपने अक्सर देखे मैंने..!
खुश रहा अक्सर उसी में .........!
जो आपने हमें दिया ,
जो माँ ने हमें दिया,
कभी फैलाया हाथ नहीं ......!!
कभी न की ज़िद हमने....!!!
सदैव रखा ख़ुद को ..,
मज़बूत निगाहों में आपकी...!
क्योंकि आप हमारे जीवन संबल थे बाबा....!
माना अब हूँ
बेरोज़गार मैं ...!
जेबें हैं ख़ाली मेरी ... हाथों में हैं आपके सपने सारे.....!!!
पर हौसला आप थे मेरे..!
मेरी नाकामियाँ आपको
झुका नहीं सकतीं ....!
यह सोचकर बढ़ता रहा
जीवन पथ पर अपने
पर आज क्यों कमज़ोर ,अहसाय
बने बैठे हो ...!
क्यों ख़ाली ज़मीन पर लेटे हो...?
याद है मुझे,
मैंने खाई थीं रोटियां चार.,
आपने आधी भी नहीं ....!
पर फिर भी उठाकर कांधों पर ......
दौड़ लगाई स्कूल तक
धूप हो या छांव....!
आपकी मज़बूत परछाई ने हमेशा मुझे बचाकर रखा....!
दीपावली के हों पटाखे
या होली के रंग
हर चीज़ से नवाजा बचपन को मेरे...!
जब गिर पड़ा था सीढ़ियों से मैं ...,
लगा था प्लास्टर पैरों पर...!
मेरी लाठी बन उठाए फिरते थे मुझे,
कभी स्कूल तो कभी धर...!
फिर क्यों बाबा,
कब जवाब दे गई हिम्मत आपकी,
नाकामी को मेरी सह नहीं पाए...,
लगा के फांसी अरमानों की
क्यों फंदे पर झूल गये..?
एक विश्वास तो किया होता बेटे पर अपने .....!
कहा तो होता चल ..,
आज नहीं तो कल ही सही
पर नहीं कहा कुछ भी ...
कायर बन लगा ली फांसी....!!!!!!!!
अब....
कैसे उठाऊँ अर्थी को
आपकी....?
कांधों पर आपका विश्वास ,
आपका स्नेह घेरा बनाए बैठा है
सारे कहते हैं मुझसे......
"तू है हत्यारा" ....!!!
अपने बाबा का.......
तुझे हक़ नहीं अर्थी को कांधा देने का ........
#अनु🌺🍂🍁
वाह !
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी मार्मिक प्रेरक अभिव्यक्ति जो गंभीरता ओर ले जाती है। बधाई एवं शुभकामनाऐं अनु जी।
दिल को छूते हुए अल्फ़ाज़ ... पिता की स्मृति में लिखे मार्मिक शब्द सोचने को
जवाब देंहटाएंमजबूर करते हैं ...
http://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2016/07/blog-post_41.html
जवाब देंहटाएंदिल को छूते हुए अल्फ़ाज़
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