बुधवार, 1 नवंबर 2017

प्याज संग आधी रोटी,

प्याज़  रोटी और कविता

कभी खाई है प्याज़ संग रोटी

और पिया है आधे  भरे गिलास का पानी

जब अतड़ियाँ  दहाडें  मार मारकर रोती हैं

और एक नंगा बदन करवट बदल बदलकर

चादर ताने सो जाता है

न चाहते हुए भी

मरी हुई आँखों से रोटी के सपने देखता है

और कोसता है  ख़ुद  को  मर जाऊँ या मार दो मुझे

खाली बर्तन, टूटी छत और दरवाज़ों से आती

हिचकी... भूख और बेरोज़गारी की

और पल-पल खिड़की से झांकता वो काला यमराज

कभी लगा नहीं अपनी जिंदगी के 35 वें साल में

एक ऐसा भी वक़्त आएगा

मांगी हुई रोटी के साथ आधा टुकड़ा प्याज़ का खाऊँगा

साथ में खड़ी है नंगों की फ़ौज

और मुँह  चिढ़ाती नमक की ख़ाली डेलियाँ

सिसकती जवानी ख़त्म हो गई संग चूहों की दौड़ में

हाँ  मैंने खाया  है प्याज़  संग रोटी का टुकड़ा

नंगी अतड़ियों को ओढ़कर

और लगा कहानी लिखने अपनी

कुछ सच और कुछ  झूठ जोड़कर

पर मैं जानता हूँ मेरा दर्द, मेरी भूख

तुम्हारे  मेरी कविता पढ़ने तक ही होगी

जगन्नाथ रद्दी में फेंक चल दोगे आधे प्याज़  की तरह

और मैं किसी रात मर जाऊँगा

इस टूटी झोपड़ी के अंदर

अपनी सड़ी हुई कविता के साथ

#अनु🍁🍁🍁🍁

1 टिप्पणी:

  1. गहन पंक्तियाँ, हृदय की टीस को प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा व्यक्त करती आपकी रचना

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