तू मेरी ज़िंदगी की खुली किताब हो गई.....
शहरों के शहर....
तमाम गुल हो गए....!
तेरे ......आने से ....!
ऐ परी!
मिज़ाज-ए-मौसम की तपिश मखमली हो गई
कभी धूप-सी खिली
तो कभी दिसंबर की सर्द शाम हो गई।
तुझे सोचकर सोने की हर कोशिश मेरी
मुझसे लिपटकर अब ख़्वाब हो गई
हर शै को है
तेरी ख़ुशबुओं से राब्ता ऐ परी!
तेरे आने से चाँद भी
अब शरमा गया ...!
तुम तक पहुँचने की हर चाह मेरी
यूँ ही शबनमी नूर हो गई
तुम मेरी तन्हाइयों के बादल हो
जो तुम्हारे हँसने से ख़फ़ा हो गए
शहरों के शहर ...
तमाम गुल हो गए...!
तेरी निगाहों से वाबस्ता
मेरे फ़साने आम हो गए
शहरों के शहर......
तमाम गुल हो गए...!
तेरे आने से ऐ परी!
मेरी छुपी ख़ामोशियों के पंख उग आये
मैं इश्क़-इश्क़ करता रहा और
तू मेरी ज़िंदगी की खुली किताब हो गई...... !
#अनु
शानदार मनोभावों को सुंदर शब्दों में पिरोयी गयी आपकी रचना।
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