चित्र और जानकारी गूगल से
( यह तस्वीर हॉलीवुड के बहुत ही प्रसिद्ध अभिनेता आर्नोल्ड श्वार्जनेगर की है, वह अपने समय के बहुत ही प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और बॉडीबिल्डर रहे हैं, उनके पीछे जो होटल है उसके सामने यह जो सिल्वर की विशाल मूर्ति लगी है, ये इनकी खुद की मूर्ति है, जिन का अनावरण वर्ष 2014 में इन्होंने खुद किया था, परंतु एक समय ऐसा आया जब वक्त और रसूख ने पलटा खाया और वह उसी होटल में गए तब उन्हें वहाँ पर रहने की अनुमति नहीं मिली, और उन्होंने विरोध स्वरूप उसी मूर्ति के नीचे जिन का अनावरण उन्होंने किया था सारी रात ठंड में ठिठुरते हुए बिताई.... इसे कहते हैं वक्त का पलट जाना.. इस घटना से एक यह भी सीख मिलती है कि अपने अच्छे समय में किए गए अच्छे कार्य करें कभी धोखा दे जाते हैं इसलिए हमेशा खुद पर भरोसा बनाए रखें दूसरों पर भरोसा करने की अपेक्षा ...आज जो मैंने कविता लिखी है उसका इस चित्र से या अर्नाल्ड श्वाजनेगर से कोई संबंध नहीं है हां ठंड से ठिठुरते हुए व्यक्ति की जो हालत होती है उसे सोचते हुए मैंने यह जानकारियां साझा की और अपनी कविता नीचे डाली है मैंने)
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लल्लन हलवाई की दुकान तले
पौ फटे कोई ठिठुर रहा था,
स्वप्न में अलाव जलाये
कोई ख़ुद को मोटे खद्दर में लिपटाये
सो रहा था,
जाग जाता था कभी-कभार
कुत्तों के असमय भौंकने से,
फिर कछुए की भांति सर को निकाल
देख लेता लैंप-पोस्ट की ओर
और मन ही मन गुर्राता
उनकी तरह,
और फिर से सो जाता
बदन को सिकोड़कर
और विचरता फिर से स्वप्न में,
लिए हाथों में कुल्हड़ की चाय,
और सामने पुआल की आग जलाए,
पर हाय री क़िस्मत,
खुलती है आँख तब उसकी
जब मिठाई का टुकड़ा समझ,
चूहे कुतर डालते हैं अँगूठा पैर का
और चीटियाँ चढ़ आती हैं
बदन पर उसके,
तब वह सोचता है उठकर,
इन चीटियों को क्या पता,
इन चूहों को भी क्या पता,
कुतर रहे हैं जिसे वे,
वह कोई गुड़ की डली नहीं,
चिथड़ो में लिपटा
एक पुराना अख़बार है
जिसके पन्नों में अंकित पंक्तियाँ,
समय की मार के साथ धूमिल हो चुकी हैं,
जगह-जगह में बन गये छिद्र,
न जाने कब इस अख़बार के पन्ने को,
हवा के संग उड़ाकर कहीं लेकर
पटक देंगे..।
चलो अब समेटता हूँ अपने बिस्तर को,
अधूरे देखे सपने को
ठंड बाक़ी है अभी
कल फिर ठिठुरुंगा यहीं,
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अनीता लागुरी "अनु"