बुधवार, 4 दिसंबर 2019

मोनालिसा की मुस्कान.!

चित्र गूगल से साभार 
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एक  बौराये हुए कवि ने
आर्ट गैलरी में घूमते हुए,
मुस्कुराती हुई मोनालिसा की
 पेंटिंग से पूछा..!
 तुम मुस्कुरा रही हो
या फिर मैं तुम्हें देखकर
मुस्कराने की तैयारी कर रहा हूँ
सच है तुम्हारी मुस्कान सिर्फ़
रेगिस्तान में नागफनी ही उगा सकती है
 जर्जर पड़े मकानों में
 इंद्रधनुष नहीं उगा सकती हैं
 मोनालिसा की पेंटिंग ने
तीखी की अपनी बरौनियाँ
 और कह डाला कवि से
 तुम 21वीं सदी के कवि हो
मैं 1503 का एक अनसुलझा रह्स्य
मेरी मुस्कान में विलुप्त कुछ भी नहीं
तुम आज भी अपने ही सवालों के घेरे में
अपनी अंतरआत्मा को कोसते हुए
 विकल्प तलाशते हो
 परंतु मेरी स्थिर मुस्कान
कई शताब्दियों तक भी यों ही क़ाएम रहेगी
क्योंकि मैं विकल्प नहीं 
विकल्प मुझे तलाशते हैं।
🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
#अनु लागुरी

18 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह आधुनिक तरीके की कविता बहुत ही अच्छा प्रयास एक परेशान बेहाल कवि की मानसिक स्थिति यहां स्पष्ट हो रही है ऐसा प्रतीत हुआ मुझे,
    और उस पर मोनालिसा का जवाब बेहद सुंदर संयोजन का भाव प्रदर्शित किया है तुमने मन तो करता है कि बहुत गहराई में जाकर इस कविता की अच्छे से विवेचना करुं, परंतु समय का अभाव हमेशा ही मुझे रोक देता है किसी भी कविता का विषय तब तक हमें प्रभावित नहीं करता है जब तक कि उसके अंदर का सार हमें एक बार में ही समझ ना आ जाए किसी कविता को समझने के लिए अगर दो-तीन बार पढ़ना पड़े तो वह कविता मैं नहीं समझती कि बहुत उन्नत यह प्रभावशाली कविता होगी हमेशा ही कविता की प्रथम पंक्तियां ही अगर आपके दिल को छू जाए और आप आगे पढ़ने को मजबूर हो जाए तो महसूस होता है कि यहां पर कभी एक लेखक का लिखना सफल हुआ..।
    इस कविता की शुरुआत तुमने बहुत अच्छी की है लेकिन आगे चलकर यह कमजोर लग रही है मेरी राय मानो तो इस कविता में विस्तार करो और इसे और खूबसूरत तरीके से सजाओ ताकि एक बहुत ही प्रभावशाली कविता बने क्षमा चाहूंगी अगर तुम्हें मेरी बात बुरी लगे तो..🙏

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका इतनी गहराई से अपनी बात रखने के लिए आपने जो भी कहा है उसी में अपने सही मार्गदर्शन के रूप में ग्रहण करूंगी बहुत बार क्या होता है कि हमें अपनी कविता की कमजोरी पता नहीं चलती है जब पाठक हमें कविता में व्याप्त कमजोरियां बताते हैं तब हमें समझ में आता है कि आखिरकार हमसे कहां चूक हुई है,
      आपकी बात ध्यान में रखूंगी हमेशा ऐसे ही साथ बनाए रखें धन्यवाद

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  2. तुम आज भी अपनी ही सवालों के घेरे में
    अपनी अंतरात्मा को कोसते हुए
    विकल्प तलाशते हो,
    परंतु मेरी स्थिर मुस्कान
    कई शताब्दियों तक भी यूं ही कायम रहेगी
    बहुत सुंदर और सार्थक रचना अनीता जी 👌👌

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका अनुराधा जी मुझे बेहद खुशी हुई कि आपको मेरी रचना पसंद आई

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  3. क्यूँकि मैं विकल्प नही,
    विकल्प मुझे तलासते है।
    गागर में सागर भर दिया है अनु जी आपने, बधाई

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद शालिनी जी आपको अपने ब्लॉग में देखकर मुझे बेहद खुशी हुई आते रहिएगा

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. .. बहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा दी... मैं जरूर आऊंगी..!

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3560 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद विर्क जी मैं जरूर आउंगी

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  7. तुम आज भी अपनी ही सवालों के घेरे में
    अपनी अंतरात्मा को कोसते हुए
     विकल्प तलाशते हो,
     परंतु मेरी स्थिर मुस्कान
    कई शताब्दियों तक भी यूं ही कायम रहेगी
    क्यूँकि मैं विकल्प नही,
    विकल्प मुझे तलाशते है।

    बहुत ही गहरी बाते कह गई आपकी कविता ,सादर स्नेह अनु जी

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    1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी आपका आप ब्लॉग पर आई मुझे बेहद खुशी हुई..।
      हमेशा साथ बनाए रखें

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  8. बहुत सुन्दर अनिता लागुरी 'अनु' जी.
    मोनालिसा की मुस्कान का रहस्य आज भी बना हुआ है क्योंकि आज भी कोई मर्द किसी औरत के जज़्बातों को, उसके ख़्वाबों को, उसकी हसरतों को पूरी तरह से समझ नहीं पाया है. मर्दों की नासमझी को लेकर ही मोनालिसा की यह व्यंग्य-मुस्कान है.

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  9. बहुत गहराई समेटी हैं आपने अपनी रचना में अनित
    और भाव उभर कर आयेंक्षहैं बहुत बहुत बधाई सुंदर सृजन के लिए।

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  10. बहुत खूबप्रिय अनु |रोचक संवाद कवि और मोनालिसा के मध्य - जिसके बारे में मैं जो कहना चाहती थी यूँ तो गोपेश जी ने कह दिया | पर जोड़ना चाहूंगी , लियनार्दो द विन्ची ने जब मोनालिसा को बनाया होगा तो उसे हरगिज़ अनुमान ना होगा कि उनका ये चित्र कालजयी होकर लोगों के लिए एक बहुत बड़ा रहस्य और पहेली सरीखा बन जाएगा | उसकी मुस्कान को लोग परिभाषित करते पस्त हो जायेंगे पर इसका सही -सही निष्कर्ष कोई नहीं लगा पायेगा कि मोनालिसा सुखी है , दुखी है या व्यंग से मुस्कुरा रही है | पर तुमने इसका मानवीकरण कर कवि के साथ जो संवाद करवाया है वह लाजवाब है |सचमुच मोनालिसा अपने आप में एक विकल्पों की खान है | जो लोग इसे देखते रहेंगे इसमें अनगिन अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर तलाशते रहेंगे | बहुत ही प्यारी हल्की रचना जो बौद्धिकता और भावों का मिला जुला रूप है | इसके लिए सस्नेह शुभकामनाएं |

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  11. क्यूँकि मैं विकल्प नही,
    विकल्प मुझे तलाशते है।
    वाह!!!
    गहन अर्थ समेटे बहुत लाजवाब सृजन...।

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  12. कई शताब्दियों तक भी यूं ही कायम रहेगी
    क्यूँकि मैं विकल्प नही,
    विकल्प मुझे तलाशते है।

    बहुत ही गहरी बाते

    जवाब देंहटाएं

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