चित्र और जानकारी गूगल से
( यह तस्वीर हॉलीवुड के बहुत ही प्रसिद्ध अभिनेता आर्नोल्ड श्वार्जनेगर की है, वह अपने समय के बहुत ही प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और बॉडीबिल्डर रहे हैं, उनके पीछे जो होटल है उसके सामने यह जो सिल्वर की विशाल मूर्ति लगी है, ये इनकी खुद की मूर्ति है, जिन का अनावरण वर्ष 2014 में इन्होंने खुद किया था, परंतु एक समय ऐसा आया जब वक्त और रसूख ने पलटा खाया और वह उसी होटल में गए तब उन्हें वहाँ पर रहने की अनुमति नहीं मिली, और उन्होंने विरोध स्वरूप उसी मूर्ति के नीचे जिन का अनावरण उन्होंने किया था सारी रात ठंड में ठिठुरते हुए बिताई.... इसे कहते हैं वक्त का पलट जाना.. इस घटना से एक यह भी सीख मिलती है कि अपने अच्छे समय में किए गए अच्छे कार्य करें कभी धोखा दे जाते हैं इसलिए हमेशा खुद पर भरोसा बनाए रखें दूसरों पर भरोसा करने की अपेक्षा ...आज जो मैंने कविता लिखी है उसका इस चित्र से या अर्नाल्ड श्वाजनेगर से कोई संबंध नहीं है हां ठंड से ठिठुरते हुए व्यक्ति की जो हालत होती है उसे सोचते हुए मैंने यह जानकारियां साझा की और अपनी कविता नीचे डाली है मैंने)*****************************
लल्लन हलवाई की दुकान तले
पौ फटे कोई ठिठुर रहा था,
स्वप्न में अलाव जलाये
कोई ख़ुद को मोटे खद्दर में लिपटाये
सो रहा था,
जाग जाता था कभी-कभार
कुत्तों के असमय भौंकने से,
फिर कछुए की भांति सर को निकाल
देख लेता लैंप-पोस्ट की ओर
और मन ही मन गुर्राता
उनकी तरह,
और फिर से सो जाता
बदन को सिकोड़कर
और विचरता फिर से स्वप्न में,
लिए हाथों में कुल्हड़ की चाय,
और सामने पुआल की आग जलाए,
पर हाय री क़िस्मत,
खुलती है आँख तब उसकी
जब मिठाई का टुकड़ा समझ,
चूहे कुतर डालते हैं अँगूठा पैर का
और चीटियाँ चढ़ आती हैं
बदन पर उसके,
तब वह सोचता है उठकर,
इन चीटियों को क्या पता,
इन चूहों को भी क्या पता,
कुतर रहे हैं जिसे वे,
वह कोई गुड़ की डली नहीं,
चिथड़ो में लिपटा
एक पुराना अख़बार है
जिसके पन्नों में अंकित पंक्तियाँ,
समय की मार के साथ धूमिल हो चुकी हैं,
जगह-जगह में बन गये छिद्र,
न जाने कब इस अख़बार के पन्ने को,
हवा के संग उड़ाकर कहीं लेकर
पटक देंगे..।
चलो अब समेटता हूँ अपने बिस्तर को,
अधूरे देखे सपने को
ठंड बाक़ी है अभी
कल फिर ठिठुरुंगा यहीं,
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂
अनीता लागुरी "अनु"
वाह बहुत ही बेहतरीन कविता लिखी है तुमने. पढ़कर बहुत अच्छा लगा साथ में जो अर्नोल्ड स्वेर्जनगर जी की जानकारी तुमने डाली है ,ये जानकर बहुत दुख हुआ। यह बेहद दुखदाई पल थे उनके जीवन के जब उनके साथ इस तरह का बर्ताव किया गया जिस इंसान ने अपनी मूर्ति का उद्घाटन किया था उस इंसान को उस होटल में जगह नहीं दी गई .. कितना वक्त बदल जाता है
जवाब देंहटाएंकविता के संदर्भ में यही कहना चाहूंगी कि बहुत ही शानदार कविता लिख डाली चूहों का जिक्र है पुराने अखबार का जिक्र है कुत्तों के गुर्राने का जिक्र है हर वो चीज हमें कहीं ना कहीं उस दुकान के आगे सो रहे इंसान की माली हालात से जोड़ रही हैं...👌लल्लन हलवाई की दुकान तले
पौ फटे कोई ठिठुर रहा था,
स्वप्न में अलाव जलाये
कोई ख़ुद को मोटे खद्दर में लिपटाये
सो रहा था,
जाग जाता था कभी-कभार
कुत्तों के असमय भौंकने से,
फिर कछुए की भांति सर को निकाल
देख लेता लैंप-पोस्ट की ओर
और मन ही मन गुर्राता
उनकी तरह,
और फिर से सो जाता
बदन को सिकोड़कर
और विचरता फिर से स्वप्न में,
लिए हाथों में कुल्हड़ की चाय,
और सामने पुआल की आग जलाए,
पर हाय री क़िस्मत,
खुलती है आँख तब उसकी
जब मिठाई का टुकड़ा समझ,
चूहे कुतर डालते हैं अँगूठा पैर का
और चीटियाँ चढ़ आती हैं
बदन पर उसके,
इन पंक्तियों में कविता की जान बसती है बहुत ही अच्छा लगा आज इसे पढ़कर इसी तरह से लिखती रहो मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ है
.. बागपत धन्यवाद आपका दीपी जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही मेरे अंदर और बेहतर लिखने की प्रेरणा जागृत करती है.. इतनी विस्तार पूर्वक की गई टिप्पणियां पढ़ने में बहुत आनंदमय लगती है, उससे भी ज्यादा जब आप कविता की विषय वस्तु को अपने शब्दों में डालकर प्रतिक्रिया के रूप में देते हैं तो कवि को इससे ज्यादा और क्या चाहिए
जवाब देंहटाएंऐसे ही हमेशा साथ बनाए रखिएगा और अपनी अमूल्य प्रतिक्रियाओं से मुझे नवाजते रहिएगा धन्यवाद
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-12-2019) को "पत्थर रहा तराश" (चर्चा अंक-3541) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी आदरणीय बहुत-बहुत धन्यवाद निमंत्रण के लिए मैं जरूर आऊंगी
हटाएंhttps://bulletinofblog.blogspot.com/2019/12/2019_6.html
जवाब देंहटाएंठंड से ठिठुरते व्यक्ति की हालत को चूहों, अखबार के पन्ने, चीटी इन सभी के उदाहरणों से बहुत ही खूबी से व्यक्त किया हैं आपने, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनु , तुमने संदर्भ दिया है हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता आर्नोल्ड श्वार्जनेगर का , जो समय के बदलते मिज़ाज़ के साथ हाशिये पर आकर गुमनाम हो गये | ये किसी के साथ भी हो सकता है कब कोई पुराने अखबार सा अनुपयोगी बनकर रह जाये कह नहीं सकते | हाँ स्वप्न सजाने में कोई पैसा नहीं लगता फिर भी ये जीवन का बहुत
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना जो नये प्रयोग से बहुत ही कम शब्दों में अपना बड़ा प्रभाव छोडती है | आज बहुत दिनों बाद तुम्हारे ब्लॉग पर लिख पायी | वैसे आती रहते हूँ |लिख नहीं पाती बस |अच्छा लिख रही हो तुम्हारे लिए मेरी हार्दिक शुभकामनायें |
उचित संदेश दिया आपने आदरणीया दीदी जी ठिठुरन सर्द हवाओं की हो या ज़िंदगी में आए उलटफेर की मन भीतर एक अलाव ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण पंक्तियों के संग सुंदर अभिव्यक्ति य
सादर प्रणाम 🙏