
चित्र गूगल से साभार
मरुस्थल चीत्कार उठा
प्रसव वेदना से कराह उठा
धूल-धूसरित रेतीली मरूभूमि में
नागफनी का पौधा
ढीठ बन उग उठा
था उसका सफ़र बड़ा कठिन
बादलों ने रहम न दिखाया
न उसे कोई उर्वरक मिला
ज़मीं से नमी का सहारा न मिला
फिर भी ढीठ नागफनी का पौधा
बेशर्म बन उग उठा
चाहा तो उसने भी था
कि कोई भर लेता उसे भी
प्यार से अंकपाश में अपने
और सहलाता सजाता,
केश-लतिकाओं में अपने
मगर वह गुलाब नहीं था
बिडंबना उसकी क़िस्मत की
काँटे थे गुलाब और नागफनी में
मगर स्वीकारा गया गुलाब
और नागफनी!
यों ही अकेली ढीठ बन,
मुस्कुराकर मार्मिक मरुभूमि में
रह गयी बेकल बेचारी
कह गयी नई परिभाषा वह
जिजीविषा के आधार की!
मगर जाग जाती थी कभी-कभी
दबी संवेदना उसकी
वह भी रो लेती थी चुपके से
जब तितली मंडराकर उसके ऊपर से
नज़रें फेरकर निकल जाती
इंतज़ार करती थी शिद्दत से
मगर लोगों की हेय दृष्टि बदल न सकी
तो उसने ख़ुद को ही
रूपांतरित करने का निश्चय किया
बन स्वाभिमानी
नागफनी का पौधा
गरम थपेड़े खाते-खाते
ठंड की मार सहते-सहते
संघर्षों की गाथा लिखता गया
कभी न मुरझाना
कभी निराश न होना
ख़ुद को समझाता गया
अपनी पत्तियों को
काँटों में रूपांतरितकर
देहयष्टि को माँसल बना
सहेजकर जल की बूँदें
ढीठ बन
धारा के विरुद्ध भी जी गया
अगली बरसात तक
पानी बचाकर ग़म पी गया
अरे देखो!
जीवन संगीत का नया राग
इठलाकर सुना गयी!
वह रेगिस्तान में उग आयी थी
जीवन संघर्ष-सी एक रागिनी
मुस्कुरा उठी थी एक नागफनी!
@अनीता लागुरी 'अनु'
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन है आपका हृदय स्पर्शी और एक बेमिसाल चिंतन ।
जवाब देंहटाएंग़ज़ब प्रस्तुति।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (09-12-2019) को "नारी-सम्मान पर डाका ?"(चर्चा अंक-3544) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
आदरणीया दीदी जी नागफनी की व्यथा कथा को समझकर उसे सकारात्मक संदेश में परिवर्तित कर सुंदर शब्दों में पिरोकर जो अनूठा सृजन आपने किया है....नमन आपकी रचनात्मकता को 🙏
जवाब देंहटाएंवाह!...अद्भुत,अप्रतिम 👌
सादर प्रणाम।
"जीवन संघर्ष-सी एक रागिनी"
जवाब देंहटाएंप्रेरक और मन भावनी
दिल को छुता बहुत ही सुंदर सृजन, अनु दी। संघर्षो से कैसे लड़ा जाता हैं ये नागफनी के पौधे के माध्यम से बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया हैं आपने।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (30-12-2019) को 'ढीठ बन नागफनी जी उठी!' चर्चा अंक 3565 पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
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रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत ही बेमिसाल तुलनात्मक शब्द-चित्र .. पर एक बात ... मैं हस्तक्षेप के लिहाज से नहीं ... बल्कि उस बेचारे नागफ़नी के पक्ष में कहना चाहता हूँ कि (अन्यथा मत लीजिएगा) वो बेचारा "ढीठ" (ये शब्द मुझे उसके काँटे की तरह चुभ रहा) कतई नहीं, "कर्मठ" है, जो रेगिस्तान के रेट में हरियाली बरकरार रखता है (बस यूँ ही)...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन/बेमिसाल अनु सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंबेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति अनीता जी 👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन