मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

दिसंबर की ठंड

(........ इससे पहले कि ठंड खत्म हो जाए एक कविता ठंड पर मैं भी लिख डालती हूँ)
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जला अलाव सब बैठे हैं
बदन को पूरे कैसे ऐठें हैं
सर पर टोपी हाथ में दस्ताने
गरम चाय को चिल्लाते हैं

सूरज भी कंबल लपेटे
घर के अंदर बैठे हैं
कब जाएगी ठंड ये सारी
दिन गिनते रहते हैं

किट किट किट किट दांत है बजते
नहाने को सभी हमें है कहते
कंबल से बाहर ना निकलूँ मैं
नहाना तो दूर पानी भी ना छू लूँ मैं

छत पर आती है थोड़ी सी धूप
गगनचुंबी इमारतों ने रोक ली हर धूप
गांव का खुला अँगना याद आया
जहां धूप और अलाव के खूब मजे हमने पाया

सता ले लाख दिसंबर की ठं
मगर प्यारी लगे उतनी ही यह हमें
हर मौसम का है मजा निराला
ओ मम्मी अब दे दो गरम चाय का प्याला
    अनु🌥️⛄☃️🌧️🌫️

2 टिप्‍पणियां:

  1. दिसंबर में फोकट में A.C. के मजे लो और क्या!
    बहुत अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-01-2020) को   "नववर्ष 2020  की हार्दिक शुभकामनाएँ"    (चर्चा अंक-3567)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    नव वर्ष 2020 की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं

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