पूरी पृथ्वी में मानव जाति ही जीवित जीवों में एक अद्भुत कृति प्रकृति के द्वारा बनायी गयी रचना है जिसके अंतरमन की कोई थाह नहीं
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मैंने प्रतिक्षण इंसानी
प्रवृत्ति को मौन होते देखा है
मगर उनका मौन
उतना ही रौद्र और
शापित होता है जितना कि
एक मुलायम मासूम खरगोश को
मार डालने के बाद
ज़ेहन में आती
उसके गोश्त की गंध
आवाक हो जाता हूं ...
मैं भी...!!
इंसानों के प्रतिपल
बदलते रूप को देखकर
और जाग जाता है
मेरे अंदर छिपा
एक नन्हा शिशु मन
जो भय मिश्रित
आंखों से...घड़ियां गिनता है
क्योंकि मैं नहीं चाहता..!
जब मैं मृत्यु को प्राप्त होऊंगा
तो मेरी आत्मा ....
मुझे कोसती हुई ..!!
मगर उनका मौन
उतना ही रौद्र और
शापित होता है जितना कि
एक मुलायम मासूम खरगोश को
मार डालने के बाद
ज़ेहन में आती
उसके गोश्त की गंध
आवाक हो जाता हूं ...
मैं भी...!!
इंसानों के प्रतिपल
बदलते रूप को देखकर
और जाग जाता है
मेरे अंदर छिपा
एक नन्हा शिशु मन
जो भय मिश्रित
आंखों से...घड़ियां गिनता है
क्योंकि मैं नहीं चाहता..!
जब मैं मृत्यु को प्राप्त होऊंगा
तो मेरी आत्मा ....
मुझे कोसती हुई ..!!
दूर निकल जाये...
एक मुलायम मासूम खरगोश को
जवाब देंहटाएंमार डालने के बाद
ज़ेहन में आती
उसके गोश्त की गंध..
सुंदर पंक्तियाँ हैं, संवेदनाओं को जगाने की आवश्यकता है..
.. जी पथिक.... जी और बेहतर प्रयास करूंगी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
हटाएंजी मैं आपके लिये मानव जगत के लिये लिखा हूँ कि उन्हें अपनी संवेदनाओं को जगाने की आवश्यकता है। आपने तो भावनाओं से भर रखी हैं अपनी इस रचना को।
हटाएंआपके लिये नहीं पढ़ा जाए
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०४ -११ -२०१९ ) को "जिंदगी इन दिनों, जीवन के अंदर, जीवन के बाहर"(चर्चा अंक
३५०९ ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जी निमंत्रण के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मैं जरूर आउंगी
जवाब देंहटाएं