भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
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आज फिर तुम साथ चले आए घर की दहलीज़ तक..! पर वही सवाल फिर से..! क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़ विलीन हो जाते हो इन अंधेरों मे...
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कभी चाहा नहीं कि अमरबेल-सी तुमसे लिपट जाऊँ ..!! कभी चाहा नहीं की मेरी शिकायतें रोकेंगी तुम्हें...! चाहे तुम मुझे न पढ...
ओह..मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ अन्नू।
जवाब देंहटाएंबहुत हृदयस्पर्शी लिखा है प्रिय अनु | भीतर की बर्फ का पिघलना किसी को द्रवित कर जाए, ये चलन शायद दुनिया में है ही नहीं |
जवाब देंहटाएंप्रिय अनू , पहले अच्छा खासा था ब्लॉग| अब बदलकर कई विकल्प नहीं दिख रहे | अगर कर सको तो वॉटरमार्क या ओसमइंक थीम लगकर कोशिश कर के देखो |
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-01-2020) को "मैं भारत हूँ" (चर्चा अंक - 3581) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मकर संक्रान्ति की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ओह!!!
जवाब देंहटाएंबेहद हृदयस्पर्शी सृजन
दिल को छू गईं आपकी पंक्तियाँ अनू जी !
जवाब देंहटाएंसोचने के लिए और मर्द होने के नाते शर्मसार होने के लिए मजबूर भी करती हैं आपकी पंक्तियाँ !
बहुत सुंदर सृजन
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