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जंगल के बीचोबीच,
पत्थरों की ओट में
उग आया था,जामुन का पौधा
और लगा अंकुरित होने
और फिर बढ़ता रहा
बढ़ता रहा...
विपरीत परिस्थितियों के बीच
और एक दिन बड़ा हो गया।
और लगा फल गिराने धप्प से
पर हम मनुष्य क्यों...?
क्यों घबरा जाते है।
टूट जाते हैं , बिखर जाते हैं
जब परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं होती
क्यों उस जामुन के पौधे की तरह
खुद में #जिजीविषा समाहित किये ,
जीने का प्रयास हम नही करते ,
मनुष्य होना आसान नहीं..?
🌿🍁🍂🍁🍂🍁🍂
अनीता लागुरी "अनु"
भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
शुक्रवार, 10 जनवरी 2020
जिजीविषा..जीने की इच्छा में उग आते हैं पेड़ पौधे
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आज फिर तुम साथ चले आए घर की दहलीज़ तक..! पर वही सवाल फिर से..! क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़ विलीन हो जाते हो इन अंधेरों मे...
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कभी चाहा नहीं कि अमरबेल-सी तुमसे लिपट जाऊँ ..!! कभी चाहा नहीं की मेरी शिकायतें रोकेंगी तुम्हें...! चाहे तुम मुझे न पढ...
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
मनुष्य होना आसान नहीं, फिर भी?
जवाब देंहटाएं" मनुष्य होना आसान नहीं "क्योकि मनुष्य की आकांक्षाएं बहुत होती हैं ,सुंदर सृजन अनु जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंवाह!!!
क्यों उस जामुन के पौधे की तरह
खुद में #जिजीविषा समाहित किये ,
जीने का प्रयास हम नही करते ,
सुंदर सकारात्मक रचना अनु।
जवाब देंहटाएंस्वाभाविक और यथार्थ वादी सजीव चित्रण।
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक रचना अनीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब
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