वो गुलाबी स्वेटर....
वो बार-बार
बुलाकर उपर से नीचे
तक नाप लेने की
तुम्हारी शरारत,
वो छेडख़ानी
वो ऊन के गोलों से
मुझे लपेट देना
और कहना मुझसे ...
पकड़ो....पकड़ो... मुझे...!
याद आती है
बातें तुम्हारी
तुम बुनती रहीं
रिश्तों के महीन धागे,
और मैं बुद्धू
अब तक उन रिश्तों में
तुम्हें ढूँढ़ता रहा।
उन रंग-बिरंगे
ऊनी-धागों में छुपी
तुम्हारी खिली-सी मुस्कुराहट,
ढूँढ़ता रहा वह मख़मली एहसास
जब प्यार से कहती थी मुझे
ऐ जी ....!
प्लीज़ चाय...
मेरे लिए भी.....!!
हाथों में आपका स्वेटर उलझा है
वक़्त बावरा हो चला है,
सब समेटे चल पड़ा है
ज़र्द होती हथेलियों के बीच
अश्कों को पौंछता
नीम-सा कड़वा-मीठा हो चला है।
पर क्या कहूँ....
यादें हैं बहुतेरी
यादों का क्या....!
किंतु अब भी जब
खुलती है अलमारी
तुम्हारे हाथों से बना
वो गुलाबी स्वेटर
तुम्हारी यादों को
भीना-भीना महकाता है
कहता है मुझसे
अब पहन भी लो मुझे,
समेट लो अपने
अंकपाश में मुझे
और धीरे से कहो
स्वेटर में तुम ही हो मेरे साथ !
अब पहन भी लो मुझे,
समेट लो अपने
अंकपाश में मुझे
और धीरे से कहो
स्वेटर में तुम ही हो मेरे साथ !
#अनीता लागुरी (अनु)
वाह ... मन के कोमल भाव शब्दों का रूप ले कर जब उतारते हैं ... मन की तंतुओं को छू लेते हैं ... बहुत भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी,
हटाएंआपको कविता पसंद आई इसकी मुझे बहुत खुशी है,साथ बनाये रखें..!🙏
अरे वाह !! जवाब नहीं तुम्हारी इस कविता का मंत्रमुग्ध हो गई हूं इसे पढ़कर आंखों के सामने एक खूबसूरत कपल की परिकल्पना अपने आप बनने लगी चलचित्र की तरह कविता की पंक्तियां उन दोनों के मध्य के रिश्ते को बहुत खूबसूरती से जाहिर कर रही है
जवाब देंहटाएंबड़ा ही प्यारा लिखा है "पकड़ो पकड़ो मुझे मेरे हाथों में आपका स्वेटर उलझा है"
कहीं खो सी गई इन पंक्तियों के मध्य कविता में प्रयुक्त शब्द बहुत सामान्य है परंतु कविता के भाव बहुत ही गहरे है,
एक साथी की बिछड़ जाने के बाद जो विरह वेदना वह महसूस करता है उन सब चीजों को बहुत खूबसूरती से तुमने अपनी इस कविता में डाला है..👌
"यादें हैं बहुतेरी यादों का क्या" जो भी ऋतु आती है उन ऋतु के ऊपर तुम्हारा इस तरह से कविता बनाना मुझे बहुत पसंद है
लिखती रहो आगे बढ़ती रहो बस यह मेरी ब्लेसिंग है तुम्हें..🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका, मुझे बेहद खुशी होती है कि आप मेरी कविताओं में इतनी गहराई तक उतर कर शब्द रूपी मोती चुन कर मुझे प्रोत्साहित करने वाली बॉक्स में डाल देती हैं,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगता है जब आप जैसे मित्र मेरी कविताओं में आकर अपनी प्रतिक्रिया डाल जाती हैं सही कहा आपने एक कपल के विवाहित जीवन के कुछ पलों को लिखने का प्रयास किया है मैंने आज शायद कुछ हद तक सफल रही है आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मुझे एहसास हुआ
ऐसे ही हमेशा साथ बनाए रखिएगा आपको बहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर 👌
जवाब देंहटाएंरिश्तों में ऊन की गरमाहट और प्रेम का चटक रंग लिए बहुत सुंदर अभिव्यक्ति लाजावाब सृजन।
सादर नमन सुप्रभात 🙏
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-11-2019 ) को "छत्रप आये पास" (चर्चा अंक 3534) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
याद आती है
जवाब देंहटाएंबातें तुम्हारी
तुम बुनती रहीं
रिश्तों के महीन धागे,
और मैं बुद्धू
अब तक उन रिश्तों में
तुम्हें ढूँढ़ता रहा।
बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण मनभावनी रचना
बहुत ही लाजवाब....
वाह!!!
जवाब देंहटाएंतुम्हारी यादों को
भीना-भीना महकाता है
कहता है मुझसे
अब पहन भी लो मुझे,
समेट लो अपने
अंकपाश में मुझे
और धीरे से कहो
स्वेटर में तुम ही हो मेरे साथ ! बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति
याद आती है
जवाब देंहटाएंबातें तुम्हारी
तुम बुनती रहीं
रिश्तों के महीन धागे,
और मैं बुद्धू
अब तक उन रिश्तों में
तुम्हें ढूँढ़ता रहा।.. बहुत ही सुन्दर सृजन प्रिय अनु.
सादर
वाह अनु जी!
जवाब देंहटाएंबहुत न्रम और नाजुक अहसासों को आपने शब्द-शब्द पिरोया है,समय आगे बढ़ जाता है काल का कोई व्यवधान कुछ छीन लेता है, पर उन अनमोल घड़ियों को कोई नहीं छीन सकता जो मानस पर गुलकंद सी मिठास के साथ समोई हो।
बहुत प्यारी रचना।
रिश्तों के महीन धागे,
जवाब देंहटाएंऔर मैं बुद्धू
अब तक उन रिश्तों में
तुम्हें ढूँढ़ता रहा।
बहुत ही लाजवाब...अनु जी