न जाने कौन से देश तू बसती है
अक्सर तेरी याद रह-रह आती है
समेटने बैठी हूँ तेरी यादों को
पर कागज़ के पन्नों में भी तू नहीं समाती है!
आँख खुली थी गोद में तेरी
पर तू ने दम तोड़ा हाथों में मेरे..!!
मैंने कहा मत जाओ माँ
तूने कहा तेरी शरारत अब सही नहीं जाती,
थक गयी हूँ बिटिया मेरी
अब धूल में लोटने की मेरी बारी,
माँ तू तो चल दी जाने किस देश, शहर में
पर जब भी कसकर जुड़ा बाँधूँ
कड़वे नीम का एहसास आँखों को रुला जाता है मेरे,
चंदा की लोरियाँ सुनाते-सुनाते तू ख़ुद ही चल दी चंदा के घर ,
आ देख शरारत मेरी
सर पर डाल तेरी शादी का जोड़ा,
आँचल को गंदा कर बैठी हूं
चाहती हूँ तू पास आकर मेरे
फिर से लगा दे गालों पे चपत मेरी।
और प्यारी सी झिड़की देकर मुझसे कहे
तुझे कब अक्ल आएगी
@अनीता लागुरी "अनु"
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -१०-२०१९ ) को " सृष्टि में अँधकार का अस्तित्त्व क्यों है?" ( चर्चा अंक - ३५०२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी