सिर्फ़ मैं ही क्यों भुगतूँ
तुम क्यों नहीं..?
उन सवालों की झड़ी
तुम पर क्यों नहीं..?
पर मेरी नज़रों का क्या क़ुसूर
तुम्हें वह दर्द दिखता क्यों नहीं...??
ये सवाल सुई की तरह मुझे चुभते हैं
पर शायद तुम्हें क्यों नहीं..?
तिल-तिल दर्द के साथ मैं मरती रही
पर मेरे जीने की वजह तुम क्यों नहीं..??
तुम्हारी हर दी हुई बात की
पर कमाल है दुनिया की नज़रों में तुम क्यों नहीं..?
और मैं अधमरी पेड़ बन
यह दर्द तुमने कभी सहा ही नहीं..?
ये स्याह अँधेरे मुझे डराते हैं।
पर तुम इन अँधेरों से डरते क्यों नहीं..?