एक छोटा हाथी
मेरी किताब के चित्रों में दूबका,
अक्सर मुंह चिढ़ाता है मुझे..!
चाहा उसे कई बार
बाहर निकाल लाऊं,
पर है वो टेढ़ा बड़ा
मुझसे ही कहता है...!
तुम्हें खाने को अनाज नहीं..?
भला मुझे निकालकर
क्या खाक खिलाओगी....?
और मुझे भूखे रहने की आदत नहीं
गुस्से में मार दूंगा अगर किसी को
मेरी हत्या,हत्या कहलाएंगी,
पर तेरी काले कोट में छिप जाएगी।
बाकियों को तो दे रखे हे हत्या का हथियार,
पर मुझे पकड़ ले जाओगे..!;
अगर कुछ बोला मैं खिलाफ तुम्हारे,
लगाके देशद्रोह का इल्जाम...!
बना दोगे लोकतंत्र का हत्यारा बड़ा..!
फिर भी तुम नहीं मानोगे
करवाओगे जबरदस्ती मुझसे
अपनी बात मनवाओगे,
जो ना मानी तुमरी मैंने,
बिन मौत मर जाउंगा।
या हाथ पर हाथ धर कर,
किसी कोठरी में फेंकवा दिया जाउंगा..!
फिर भी नहीं मानोगे तुम..?
भेज के अंध भक्तों की टोल
चौराहों में खून ही खून फैलावगे
युवाओं को कर अंधा
सिस्टम के गंदे बोल सिखाओगे
हां मैं आहत हूं
नजर में भले ही तुम्हारी एक छोटा अदना-सा हाथी हूं,
पर बात पते की करता हूं..!!
रहूं किताबों में सुरक्षित बनके छोटा सा हाथी
दुनिया जहान के षड्यंत्रों से दूर
शांति और सुख से भरपूर
कह लो कायर भले तुम मुझे
पर मेरे अंदर की दुनिया तुमसे लाख भली है
अनु 🍁 🍂🍁
भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018
सिस्टम से दुबका हाथी,
बुधवार, 14 फ़रवरी 2018
वैलेंटाइन-डे
❤ प्यार एक ख़ूबसूरत एहसास है इसे हर वो दिल महसूस करता है........ जो प्यार के एहसास से गुज़रता है। उसके लिए हर वह पल ख़ास होता है जब वह अपने प्यार से मिलता है। उसे उसकी बातें अच्छी लगती हैं...... उसकी मुस्कुराहट अच्छी लगती है़..... उसका हर अंदाज़-ए-बयां उसे अच्छा लगता है और वो उसकी चाहत में पूरी तरह से डूब चुका होता है। ......क्या वाक़ई इतना ख़ास होता है प्यार ?..... हमें शायद इतना ख़ास महसूस होता होगा प्यार। चलो अब बातें प्यार की कर ही रहे हैं तो कुछ अपनी भी बातें जोड़ दूँ इसमें।
पता है ?
मुझे लगता है .....
जब तुम मुस्कुराते हो
तब कहीं झरने की कल-कल करती
मधुर-सी आवाज
यूँ ही मेरे आसपास बिखर जाती है.....!
कुछ ऐसा संगीत मेरे रोम-रोम में गूंजने लगता है....!!!
जिसकी ध्वनि सिर्फ़ मुझे सुनाई पड़ती है
और मेरा मन यूँँ ही मस्त-मगन
हर गली हर चौराहे पर नाचने लगता है ....।.
जानते हो क्यों....?
क्योंकि शायद मैं प्यार के एहसास में
सर से पांव तक डूबी हुई हूँ,
यह प्यार ही तो है
जो मुझे सजने-संवरने और यूँ ही
आईने के सामने खड़े होकर
ख़ुद को घंटो तक देखने की मेरी इच्छा को बढ़ाता है ......।
न चाहते हुए भी
माथे पर एक छोटी-सी बिंदी लगाने को मजबूर करता है ।
हाथों में चूड़ियां और ,
छरहरी काया पर मेरी एक सुंदर-सा
अनारकली सूट बदल-बदलकर
पहनने को मजबूर करता है..।
कैसे बताऊँ मन न जाने क्या-क्या सोचता है।
शायद इसी को कहते हैं प्यार...
पर क्या इसी प्यार के लिए
हर एक दिल धड़कता है।
हर पल हर घंटे
हर ल्मम्हे जीता है।
क्या इस प्यार के लिए सिर्फ एक सप्ताह काफी होता है ।
ना जाने किस पाश्चात्य प्रभाव भी आकर
प्रेम दिवस के नामकरण करते चले गए
ना जाने किस पाश्चात्य प्रभाव भी आकर
प्रेम दिवस के नामकरण करते चले गए
इसे हम किसी समय के परिधि में नहीं बांध सकते हैं .!
इस प्यार को तो यह भी नहीं पता
कि हम इंसानों ने
इसके लिए भी सीमाएं तय कर दीं हैं...।
जबकि प्यार तो अनंत है ।
असीमित है ।
जिसका कोई ओर-छोर नहीं ,
यह तो हर उस दिल में बसता है ।
जहां पर हम किसी के लिए कुछ ख़ास महसूस करते हैं !
उसके लिए हर वो बातें सोचते हैं
जो उसे अच्छी लगे
उसकी ख़ुशी के लिए हर जतन करते हैं..।.
जब वो गुजरता है गली के कोने से,
तो छत के किसी कोने में खड़े होकर उसे देखते हैं ।
तब तक जब तक की वह नजरों से ओझल ना हो जाए।
उसकी हर अच्छी-बुरी बातों को
हम सही मानते हैं ।
और जब वह पास आता है ।
तो अपनी अंगुलियों में
दुपट्टे का छोर घुमाए बिना
उसकी ओर देखने
उसके धड़कनों को सुनने का प्रयास करते हैं ।
शायद यही प्यार है ।
अनचाहा अनकहा अद्भुत प्यार ...
जो तुम्हें मुझसे है .... और मुझे तुमसे..... ।
मैं अपने प्यार को एक सप्ताह में नहीं बांट सकती
मेरे लिए तो हर वह पल ख़ास है।
हर वो पल एक उत्सव की तरह है.।
जब तुम मेरे पास से गुजरते हो !
मुझसे बातें करते हो ,
तुम्हारे होने न होने का एहसास ,
मुझे अंदर ही अंदर बेचैन करता है ।
और तुम्हें देखकर मेरी आंखें भर आती हैं ख़ुशी से
मेरे लिए तो ये सारे पल वैलेंटाइन-डे से भी से भी ज़्यादा ख़ास हैं
क्योंकि प्यार की कोई परिधि नहीं होती......
# अनीता लागुरी (अनु)
कहानी संग्रह पंखुड़ियाँ (24 लेखक एवं 24 कहानियाँ )
कहानी संग्रह पंखुड़ियाँ (24 लेखक एवं 24 कहानियाँ )
कहानी संग्रह
की सूचना साझा करते हुए बहुत ख़ुशी का अनुभव हो रहा है कि इस संकलन में मेरी कहानी "सरसों के तेल की पूरी की मिठास " सम्मिलित है।
देशभर के अलग-अलग राज्यों से प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की इस पहल ने लेखकों को एक प्रतिष्ठित मंच प्रदान किया कहानी संग्रह का आयोजन करते हुए।
पंखुड़ियाँ कहानी संग्रह अब राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ई-स्टोर्स पर 24 जनवरी 2018 से उपलब्ध है।
मुझे प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की ओर से अपने मित्रों / परिचितों के लिए डिस्काउंट कूपन दिए गये हैं। इच्छुक पाठक नीचे लिखे कूपन कोड का इस्तेमाल करते हुए
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मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018
सांप्रदायिक उन्माद
अरे मारो उसे....! आहहह...!!!
पकड़ो..! काट डालो..!!!
...लो बचने न पाये...!
जलाओ उसे .!!
फ़र्क़ क्या पड़ता है?
छोड़ो !
कौन......?
पकड़ो..! काट डालो..!!!
...लो बचने न पाये...!
जलाओ उसे .!!
फ़र्क़ क्या पड़ता है?
छोड़ो !
कौन......?
....... जी
रिश्ते गिनने लग गये.....!
तो हो गयी
ख़ून-ख़राबे की होली..
रिश्ते गिनने लग गये.....!
तो हो गयी
ख़ून-ख़राबे की होली..
यह है कड़वा
मगर आज का अकाट्य सत्य
सत्य जो दिखता है
सत्य जो रुलाता है
सत्य जो पूछता है
कहां खड़े हो आज तुम
इतना गुस्सा
इतना स्वार्थ
कि अपनी आत्मतुष्टि के लिए
मगर आज का अकाट्य सत्य
सत्य जो दिखता है
सत्य जो रुलाता है
सत्य जो पूछता है
कहां खड़े हो आज तुम
इतना गुस्सा
इतना स्वार्थ
कि अपनी आत्मतुष्टि के लिए
हथियार उठाए
अपनी ही गली में
लाल रंग फैलाते हो
अपनी ही गली में
लाल रंग फैलाते हो
और नालियों में
लहू बहाते हो
और करते हो
अट्टहास!!
लो ले लिया पूरा बदला
मुझे देश-दुनिया से क्या
मैं जीता हूँ
अपने धर्म और समाज के नाम पर
ख़ून बहे तो बहे
लोगों के घर जले तो क्या
मैं नहीं झुकनेवाला
अट्टहास!!
लो ले लिया पूरा बदला
मुझे देश-दुनिया से क्या
मैं जीता हूँ
अपने धर्म और समाज के नाम पर
ख़ून बहे तो बहे
लोगों के घर जले तो क्या
मैं नहीं झुकनेवाला
देश जल रहा है
गलियों में
गलियों में
चौराहों पर
धर्म के नाम पर कत्लेआम
हो रहे हैं
भाई...अब तो डर लगता है
इंसान होने से
डर लगता है अपनी
ज़ात बताने से
न जाने कौन कब कहां
बैठा हो अंधभक्ति के साथ
और काट दे मेरा गला
धर्म के नाम पर कत्लेआम
हो रहे हैं
भाई...अब तो डर लगता है
इंसान होने से
डर लगता है अपनी
ज़ात बताने से
न जाने कौन कब कहां
बैठा हो अंधभक्ति के साथ
और काट दे मेरा गला
आज तक क्या पाया
और खोया क्या-क्या
तुमने ...हमने.....???
तुमने ...हमने.....???
# अनीता लागुरी ( अनु )
चित्र साभार : गूगल
चित्र साभार : गूगल
गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018
तुम्हारे कहने से चलो मुस्कुरा देती हूँ..!
शरमाने की कला
मेरी संवेदनाएं तो यहीं से
झाँकतीं हैं
बस जहां तक देख पाऊँ
उतने ही ख़्वाब बुनती हूँ
देख रही हो...
कटे-फटे हाथों की मेरी लकीरों को
इनमे धंसी इस माटी को
ये कहती हैं मुझसे
हमें तुम पर गर्व है
तुम भूख को मात देती हो
अपने चेहरे पर
मेरी संवेदनाएं तो यहीं से
झाँकतीं हैं
बस जहां तक देख पाऊँ
उतने ही ख़्वाब बुनती हूँ
देख रही हो...
कटे-फटे हाथों की मेरी लकीरों को
इनमे धंसी इस माटी को
ये कहती हैं मुझसे
हमें तुम पर गर्व है
तुम भूख को मात देती हो
अपने चेहरे पर
दौड़ने वाली मुस्कान से
और तुम कहती हो..?
आप ऐसे देखो तो
तस्वीर अच्छी आएगी
क्या अच्छी... क्या बुरी...!
बस तुम्हारे तस्वीर लेने से
मेरे माथे से बह रही
पसीने की बूँदें
और तुम कहती हो..?
आप ऐसे देखो तो
तस्वीर अच्छी आएगी
क्या अच्छी... क्या बुरी...!
बस तुम्हारे तस्वीर लेने से
मेरे माथे से बह रही
पसीने की बूँदें
मेरी क़िस्मत को
नहीं बदलेगी
पर बिटिया ...!
तुम्हारे कहने से चलो
मुस्कुरा देती हूँ..!
नहीं बदलेगी
पर बिटिया ...!
तुम्हारे कहने से चलो
मुस्कुरा देती हूँ..!
#अनीता लागुरी ( अनु )
मंगलवार, 30 जनवरी 2018
"पंखुड़ियाँ"
आपको यह ख़ुशख़बरी देते हुए असीम हर्ष से रोमांचित हूँ कि प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की ओर से देशभर के 24 लेखक एवं 24 कहानियां का आयोजन किया गया जिसे "पंखुड़ियाँ" नामक कहानी संग्रह के रूप में 24 जनवरी 2018 को ई-बुक के रूप में पाठकों के लिए ऑनलाइन देश और दुनियाभर के ई बुक स्टोर्स पर उपलब्ध कराया है।
प्राची डिजिटल पब्लिकेशन का हार्दिक आभार मुझे एक लेखिका के रूप मान्यता देने के लिए।
अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया गया लिंक क्लिक करें -
http://www.indibooks.in/p/pankhuriya-ebook.htmlhttp://www.indibooks.in/p/pankhuriya-ebook.html
शुक्रवार, 19 जनवरी 2018
यह भी है एक बवाल ...... !
जीवन में चढ़ते-घटते
प्रपंच का बवाल
आज तड़के दर्शन हो गये
फिर से एक बवाल के
चीख़ती नज़र आई
रमा बहू सास के तीखे प्रहार से।
कर अनसुनी क़दम ढोकर
बढ़ गया मैं
सू गली का चौराहा
किचकिच का शोर
इकलौता नल
कहें नो मोर..... ,नो मोर......
यहां भी थी
एक जंग की तैयारी
होने वाली थी
बवाल की मारा-मारी
कौन किसकी सुने
हर नारी थी सब पे भारी।
बढ़ चला फिर आगे मैं
जा बैठा कोने वाली बैंच पर
ले ही रहा था राहत की सांस
उफ़!
यहां भी हो गया प्रेमी जोड़ों में
बवाल...!
सोलहवां सावन
प्यार में डूबा मन
प्रेमी न समझे तो
दिल के टूटने का
बड़ा बवाल ....!
बवाल कहां नहीं है
बस में सीट न मिले तो बवाल
पति पसंद की साड़ी न दिलाए
तो बवाल
बच्चों की न सुनो तो बवाल
पूरी सोसायटी ही बवाल है।
कुछ होते हैं
हाई-प्रोफाइल बवाल
राजनीति की खुली गलियों में
जूतम-पैज़ार का बवाल
होंठों को सिलते
तानाशाह के रुतबे का बवाल
जो अक्सर कर देते हैं
रियाया को हलाल
कुछ मेरे मन में भी
व्याप्त हैं बवाल
इंसान हूँ
बात इंसानियत की करता हूँ
गर बना रहना चाहूँ इंसान
तो करूँ बवाल ?
पर वास्तविकता क्या है
इस बवाल की
ये सारा जीवन-तंत्र ही बवाल है
खो गयी शान्ति मन की
दौड़ रहा हर इंसान यहां
युवा दौड़ लगाए नौकरी की
ग़रीब जुगाड़ करे ज़रुरतों की
वास्तव में ये सबसे बड़ा है सवाल
सही मायने में
यह भी है एक बवाल ...... !
#अनीता लागुरी ( अनु )
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आज फिर तुम साथ चले आए घर की दहलीज़ तक..! पर वही सवाल फिर से..! क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़ विलीन हो जाते हो इन अंधेरों मे...
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कभी चाहा नहीं कि अमरबेल-सी तुमसे लिपट जाऊँ ..!! कभी चाहा नहीं की मेरी शिकायतें रोकेंगी तुम्हें...! चाहे तुम मुझे न पढ...