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एक अंतहीन सफर का झूठा अंत (लघुकथा)
.....................
"अम्मा!
अब नहीं चला जाता है,
पैर दुखने लगे हैं |"
"अब अरे ऊ... देख सामने हमारे गांव की बस्ती नज़र आ रही है।
बस थोड़ा सब्र कर बिटिया हम पहुंचने ही वाले हैं|"
"क्या अम्मा, काहे तू झूठ बोल रही है!
"दूई दिन से तोहार ई बात सुन-सुनकर हमार कान पक गईल बा....
ऐ दिदीया!!
काहे तू अम्माँ को झूठी बोले है..!"
"ई मुआँ कोरोना ,नासपीटा,करमजला आ गईल वरना काहे हम लोगन गांव जाते..।"
अम्मा जब बोल रही है, थोड़ी देर में गांव पहुँच जाएँगे तो के केरे तू लपड़झपर कर रही है।"
दे ना ..अम्माँ वो चॉकलेट तुहार साड़ी में बंधल बा न..ईईईईईई दे ना गो.."
(छोटू को चाकलेट देकर बहला ले ..लेकिन मुझे)
धप्प से छुटकी ज़मीन पर बैठ गई ...
अब क्या कहे भाई से पिछली बार जब वो अम्मा-अब्बा
के साथ इस शहर आई थी,
तो पूरे चार दिन ट्रेन में बैठकर आई थी..
और अब कहाँ से एक ही दिन की यात्रा में गांव की बस्ती दिखने लगी वो |
छुटकी समझ गई इस अंतहीन यात्रा का सच |
अनीता लागुरी 'अनु'
एक अंतहीन सफर का झूठा अंत (लघुकथा)
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"अम्मा!
अब नहीं चला जाता है,
पैर दुखने लगे हैं |"
"अब अरे ऊ... देख सामने हमारे गांव की बस्ती नज़र आ रही है।
बस थोड़ा सब्र कर बिटिया हम पहुंचने ही वाले हैं|"
"क्या अम्मा, काहे तू झूठ बोल रही है!
"दूई दिन से तोहार ई बात सुन-सुनकर हमार कान पक गईल बा....
ऐ दिदीया!!
काहे तू अम्माँ को झूठी बोले है..!"
"ई मुआँ कोरोना ,नासपीटा,करमजला आ गईल वरना काहे हम लोगन गांव जाते..।"
अम्मा जब बोल रही है, थोड़ी देर में गांव पहुँच जाएँगे तो के केरे तू लपड़झपर कर रही है।"
दे ना ..अम्माँ वो चॉकलेट तुहार साड़ी में बंधल बा न..ईईईईईई दे ना गो.."
(छोटू को चाकलेट देकर बहला ले ..लेकिन मुझे)
धप्प से छुटकी ज़मीन पर बैठ गई ...
अब क्या कहे भाई से पिछली बार जब वो अम्मा-अब्बा
के साथ इस शहर आई थी,
तो पूरे चार दिन ट्रेन में बैठकर आई थी..
और अब कहाँ से एक ही दिन की यात्रा में गांव की बस्ती दिखने लगी वो |
छुटकी समझ गई इस अंतहीन यात्रा का सच |
अनीता लागुरी 'अनु'