दीदी!
क्या गलती थी मेरी
पूछना चाहती हूँ आज
जन्म तुम्हारे बाद हुआ
इसमें मेरा क्या कसूर
क्या गलती थी मेरी
पूछना चाहती हूँ आज
जन्म तुम्हारे बाद हुआ
इसमें मेरा क्या कसूर
बाबा की अँगुली
थामी तुमने
थामी तुमने
तुम्हारी मैंने
हर चीज़ तुम्हारे बाद मिली मुझे
किताबें तुम्हारी
किताबें तुम्हारी
क़लमें तुम्हारी
बस जिल्द नयी लगा दी जाती
बस जिल्द नयी लगा दी जाती
किताबों पर
तुम्हारे कपड़ों
पर बस गोटें नई टांक दी जातीं
झिलमिल वाली
ताकि बालसुलभ मन मेरा
उलझा रहे
रंगीन गोटों की चमक में
खिलौने तुम्हारे
यहां तक कि कभी-कभी
थाली में बची सब्ज़ी
तक तुम डाल दिया करती थी
थाली में बची सब्ज़ी
तक तुम डाल दिया करती थी
उफ़ तक न करती
क्योंकि स्नेह की अटूट डोर थी दिल में
पर क्यों......?
सुहाग को अपने
बांध रही हो
संग मेरे
ये ना कोई पुरानी किताब है
ना कोई गोटे वाली फ्रॉक
ये तो ज़िन्दगी है
दीदी मेरी, यहां भी मिलेगी क्या .....उतरन तुम्हारी...!!!
सजेगी मेरी मांग की लाली
अब तुम्हारे ही सिंदूर से
अपनी शादी का जो जोड़ा
सहेज रखा है तुमने
अब तुम्हारे ही सिंदूर से
अपनी शादी का जो जोड़ा
सहेज रखा है तुमने
उसे पहनकर कैसे बैठूँ
मंडप में संग जीजू के......
मंडप में संग जीजू के......
साथ लिए फेरों का
सात वचनों का
सात वचनों का
सात जन्म का
रिश्ता......
तुम तोड़ के कैसे
मुझे जोड़ चलीं
तुम तोड़ के कैसे
मुझे जोड़ चलीं
मैं कठपुतली नहीं
हाथों की तुम्हारी
तक़दीर अपनी लायी हूँ
तक़दीर अपनी लायी हूँ
माना क़ुदरत ने
रची साज़िशें आपके साथ
घर-आंगन की किलकारी
न दी आपके हक़ में
पर मैं ही क्यों दी....
माना हूँ मैं
छोटी बहना
पर ये उतरन मुझे न देना......!!!
पर ये उतरन मुझे न देना......!!!
# अनीता लागुरी (अनु)
चित्र साभार : गूगल
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