..आ रंग उड़ेल दूँ
तुझमें सभी...!
ये स्याह-सफ़ेदी
मुझे भाती नहीं ...!
तुझे भी हक़ है,
इंद्रघनुष छूने की .. .!
किसी की मौत तेरी
किस्मत नहीं ..!
इन रश्म-ओ-रिवाज़ों के
सफ़ेद कोहरे ..!
मासूमियत को तुम्हारी
ढक सकते नहीं ..!
ये बिखरे बाल
ये सूनी मांग.......!
ये आँखों से बहती
निर्झर जल की धारा..!
इन बंधनों की
क़वायद से आज़ाद
तुझे करा दूँ ....!
आ माथे पे तेरे बिंदी लगा दूँ ...!
ओढ़ा दूँ ....तुझे ये
रंग सुनहरा......!
ये नीली..वो पीली...
वो चूड़ियाँ पहना दूँ ...!
आ उड़ेल दूँ ...
तुझमें रंग ये सारे
ये स्याह-सफ़ेदी मुझे भाती नहीं ..!
#अनु
बहुत सुंदर कविता अनु जी,हम तो सोचने ही लगे रंग भरे कोहरे को।
जवाब देंहटाएंखूब लिखिए...मेरी खूब सारी शुभकामनाएँ है जी आपको।
आ रंग उड़ेल दूँ तुझमें सभी...!
जवाब देंहटाएंतुझे भी हक़ है, इंद्रघनुष छूने का ...!
ये स्याह-सफ़ेदी मुझे भाती नहीं ....!
बड़ा ही मार्मिक और गंभीर विषय को उठाती पंक्तियाँ सामाजिक कुरीतियों पर ध्यानाकृष्ट कराती है। किसी जिन्दा इन्सान से जीने का हक कोई कैसे छीन सकता है...
वाह ! अनु जी आपने एक गंभीर बिषय चुना है अभिव्यक्ति को व्यापक बनाने के लिए। समाज ने जहां स्त्री को अनेकानेक परम्पराओं और रूढ़ियों में जकड़कर सांस्कृतिक बेड़ियों से लाद दिया है वहीँ आप इस जड़ता को तोड़ने की अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ ख़ूबसूरत संदेश दे रहीं हैं। नमन आपके सृजन को। बधाई एवं शुभकामनाऐं। लिखते रहिये।
जवाब देंहटाएंजी...धन्यवाद रविंदर जी,छोटा सा प्रयास अपनी कविताओं के जरिये कर रही हुं,आपकी टिप्पणी आपके मार्गदर्शन .....मेरी कविताओं मे व्यापत कमीयों से मुझे अवगत करा रही हे।
हटाएंइन सामाजिक कुरीतियो से पार पाना असंभव तो नही पर आसान भी नही है...!अपने स्नेहवचन सदैव बनाए रखे....धन्यवाद...!
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन तरीकों से व्यक्त की गई है बातें।
जवाब देंहटाएं"ये बिखरे बाल
ये सूनी मांग.......!
ये आँखों से बहती
निर्झर जल की धारा..!
इन बंधनों की
क़वायद से आज़ाद
तुझे करा दूँ ....!
आ माथे पे तेरे बिंदी लगा दूँ ...!"
मुझे इसमें नियंत्रित क्रोध भी दिख रहा है। एक खूबसूरत कला।
जी धन्यवाद प्रकाश जी,कविता के मर्म को आपने समझा....!
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हटाएंकोहरे के माध्यम से जीवन के कोरे पन का चित्रण किया है ...
जवाब देंहटाएंइसमें खिलखिलाते रंग भरने होते हैं रंगीन बनाने के लिए ... जो जरूरी हैं ... अच्छी रचना ...
जी धन्यवाद दिगंबर जी बेहतरीन प्रतिक्रिया ! कोहरे ना केवल ठंड के घटक होते हैं बल्कि ये जीवन मे भी कभी कभी धने कोहरे के साये बिछा देते है..जिनसे बाहर निकलने का प्रयास करना चाहिए.। बस इसी को ध्यान मे रख कर ये रचना लिखने का प्रयास की हुं,आपने सराहा ह्रार्दिक प्रसन्नता हुवी..!!!
हटाएंआपका सुन्दर विचार प्रसंशनीय है जिसको सराहना मिलनी चाहिये.. बधाई...
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद विनोद जी..!!बेहद खुशी हुवी आपकी प्रतिक्रिया जानकर....!
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंएक गंभीर बिषय
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
जी धन्यवाद,संजय जी..हर्ष प्रतीत हो रहा है कि आपको मैरी रचनाएं अच्छी लग रही है...!!
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