तुम चार थे,
मैं एक थी.....!
तुम हैवान थे,
मैं मासूम थी...!
तुम बलवान थे,
मैं लाचार थी....!
तुम कायर दरिंदे थे,
मैं निरीह पशु थी...!
वो तुम्हारी जश्न की रात थी,
मेरी ज़िन्दगी में
लगी बदनुमा दाग थी...!
क्यों .....?
तुम पुरुष थे...?
मैं एक स्त्री थी...।
#अनु
Bahut sundar or heart touching
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (21-01-2020) को "आहत है परिवेश" (चर्चा अंक - 3587) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (21-01-2020) को "आहत है परिवेश" (चर्चा अंक - 3587) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'