शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

सिस्टम से दुबका हाथी,

एक छोटा हाथी
मेरी किताब के चित्रों में दूबका,
अक्सर मुंह चिढ़ाता है मुझे..!
चाहा उसे कई बार
बाहर निकाल लाऊं,
पर है वो टेढ़ा बड़ा
मुझसे ही कहता है...!
तुम्हें खाने को अनाज नहीं..?
भला मुझे निकालकर
क्या खाक खिलाओगी....?
और मुझे भूखे रहने की आदत नहीं
गुस्से में मार दूंगा अगर किसी को
मेरी हत्या,हत्या कहलाएंगी,
पर तेरी काले कोट में छिप जाएगी।
  बाकियों को तो दे रखे हे हत्या का हथियार,
पर मुझे पकड़ ले जाओगे..!;
अगर कुछ बोला मैं खिलाफ तुम्हारे,
लगाके देशद्रोह का इल्जाम...!
बना दोगे लोकतंत्र का हत्यारा बड़ा..!
फिर भी तुम नहीं मानोगे
करवाओगे जबरदस्ती मुझसे
अपनी बात मनवाओगे,
जो ना मानी तुमरी मैंने,
बिन मौत मर जाउंगा।
या हाथ पर हाथ धर कर,
किसी कोठरी में फेंकवा दिया जाउंगा..!
फिर भी नहीं मानोगे तुम..?
भेज के अंध भक्तों की टोल
चौराहों में खून ही खून फैलावगे
युवाओं को कर अंधा
सिस्टम के गंदे बोल सिखाओगे
हां मैं आहत हूं
नजर में भले ही तुम्हारी एक छोटा अदना-सा हाथी हूं,
पर बात पते की करता हूं..!!
रहूं किताबों में सुरक्षित बनके छोटा सा हाथी
दुनिया जहान के षड्यंत्रों से दूर
शांति और सुख से भरपूर
कह लो कायर भले तुम मुझे
पर मेरे अंदर की दुनिया तुमसे लाख भली है
               अनु 🍁 🍂🍁

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