न जाने कौन से देश तू बसती है
भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
शनिवार, 10 नवंबर 2018
माँ
न जाने कौन से देश तू बसती है
रविवार, 5 अगस्त 2018
"मैं"
मुड़ कर देखा मैंने
रह गई थी
कुछ सिल्वटे चादर की ना जाने क्यों...!!
उन्हें छूने को हाथ बढ़ाया
पर कांप उठा....!
निर्बल चितवन सारा..!!
क्षणिक राह कि मैं पथिक
हक कहां मुझे...
सुकून भरी रातों का...!!
व्यर्थ प्रेम की
अंकिचन अभिलाषा लिए,
टूटे दर्पण में,
घायल अक्स..तलाशती रही।
और किरचियां जीवन की
मुझसे कहती रही..!!
वो देखो...!!
अश्रु में डूबी
कश्ती तुम्हारे जीवन की,
चाह कर भी ,
मन को तुम्हारे....
बांध ना पाई..!!
बस एक ही हाथ जुड़ा था!!
वो था तुम्हारा...!!
अनु
बुधवार, 1 अगस्त 2018
सोमवार, 2 जुलाई 2018
#घुटन सी होने लगी है अब
सीलन से भरी
घुटती वो रातें,
जहां हर रात,
रिश्तों का मेरे,
दाह-संस्कार करते हो,
मेरी खिलखिलाती हंसी पर,
राक्षस बन प्रहार करते हो,
सिर्फ़
किचन और देह से जुड़ा
नहीं हे ये रिश्तों का गणित,
मेरी मन की बगिया,
तुम्हारे अनगिनत स्पर्शो,
में झांकते हुए जीवन
का प्रत्युतर चाहती है,
पर तुमने.......!!!
अपने हिस्से में
कभी मुझे बसने ही नहीं दिया,,
हर बार रखा,
किसी किराएदार की तरह,
और मेरे अंतर्मन को
भेदते रहें,
नुकीले दांतो के
शब्द बाण की तरह...!!
अपनापन तो कभी, देखा ही
नहीं तुम्हारी आंखों में,
देह का विन्यास ,
रिश्ता नहीं बनाता है..!!!
अनु,🍂🍁
गुरुवार, 7 जून 2018
#ब्रेक टाईम
लंबी श्वास भरी उसने और चाय की अंतिम चुसकी ली,और अपनी कमर में साड़ी के आंचल को खोसा, .....बेतरतीब ढंग से अपने बालों की छोटी सी पोनी बनाई और जुट गई घर के कामों में,... इस छोटे से ब्रेक टाइम में उसने खुद को रिचार्ज किया उसे पता था अब वह दिनभर बहुत व्यस्त रहने वाली है...!!! ये हे हमारी प्यारी अनुष्का जो शादी के 5 सालों के बाद भी एक अदने से ब्रेक के लिए तरसती रहती है..!! वो चाहती है कि जब वो चाय की प्याली के साथ बालकनी में खड़ी हो तो उसे कोई भी परेशान ना करें कोई भी उसे ना टोके ..हब्बी भी यह ना कहें अनु प्लीज मेरी टाई कहां है... ??? मेरी जुराब कहां है ?? यह बच्चे यह न कहे की मम्मी मेरी टिफिन कहां है ? बस इस आधे धंटे वो खुद को देना चाहती है ,जरा सा गुनगुना चाहती है,ये छोटा सा ब्रेक अनु के लिए..बेहद खास होता है....उसे अच्छा लगता है !!! बालकनी सेभागती दौड़ती जिंदगी को सड़कों पर उलझते देखना,और ... वहीं कोने में गमलों में उग आए मनीपंलाट के लतरौ को बिला वजह तंग करना और बालकनी में बैठकर आते-जाते लोगों को देख चाय..... की छोटी छोटीं चुस्कियां लेना और हौले से मुस्कुराकर सामने वाली शर्मा आंटी को गुड मॉर्निंग कहना...!!!
पर क्या करें वो भी इस एक पल को पाने के लिए वो सुबह के पांच बजे उठती है.....!!
पर फिर भी वो इस पर को luckly ढुंढ पाती है..!
(अब दोपहर को मिलती हुं लंच टाइम में)
अनु 🍂🍁
सोमवार, 28 मई 2018
I want to tell everyone..that I am not wrong .nor ever..
I want to shout.but my scream s smolder inside this house..!!
I want to break the chainsmokers of this slavery..!!
Want to fly in the open sky..!!
I want to fly my kiye to the highest height.in the sky...!!i
I want to.live life..!!
I want breath..
But i wont..
Plz give me back my freedom ..!!
सोमवार, 16 अप्रैल 2018
ख़ामोश मौतें!!
हुईं ख़ामोश ,
ये फ़ज़ाओं में कोन-सा
ज़हर घुल गया..!!
जहां तक जाती हैं
नज़रें मेरी..!
वहां तक लाशों का
शहर बस गया..!!
इन सांसों में कैसी,
घुटन है छाई,
मौत से वाबस्ता
हर बार कर गया...!!
ये कैसी ज़िद है,
तुम्हारी
ये कैसा जुनून है
तुम्हारा..!
कि मुकद्दर में मेरे
सौ ज़ख़्म लिख गया..!!!
तुम भी इंसां हो
मैं भी इंसां हूँ ,
फिर भला मेरी मौत
तुम्हें है...क्यों प्यारी....??
कभी देखा है?
मासूम हाथों में..!!
बहते लाल रंग को!!
जिह्वा निकल रही ,
उबलती आंखों को,
कतारों में
लेटी अनगिनत लाशों को,
कफ़न भी मयय्सर न
होने वाले मंज़र को...!!
वो ऊपर बैठा
कब इंसानो को मैंने
राक्षस बना दिया..!!!
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आज फिर तुम साथ चले आए घर की दहलीज़ तक..! पर वही सवाल फिर से..! क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़ विलीन हो जाते हो इन अंधेरों मे...
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कभी चाहा नहीं कि अमरबेल-सी तुमसे लिपट जाऊँ ..!! कभी चाहा नहीं की मेरी शिकायतें रोकेंगी तुम्हें...! चाहे तुम मुझे न पढ...