चाय के पतीले में
वो चाय पत्ती नहीं,
बल्कि रिश्तो में उबल आई
कड़वाहट उबाल रही थी..।
ना चाहते हुए भी उस कड़वाहट को
जब वो सामने रखी कप में उड़ेलने लगी..!
उसका धुआँ - धुआँ होता मन
अतीत की परतें खुरचने लगा.!
और फैलाने लगा रिश्तो में बन आए बासी पन को
बस इस किचन के दरवाजे तक ही
उसकी हद थी!
उसके बाहर तो उसकी पैरों में,
बेड़ियाँ लगा दी जाती थी.
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#अनीतालागुरी