भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
बुधवार, 21 फ़रवरी 2018
शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018
सिस्टम से दुबका हाथी,
एक छोटा हाथी
मेरी किताब के चित्रों में दूबका,
अक्सर मुंह चिढ़ाता है मुझे..!
चाहा उसे कई बार
बाहर निकाल लाऊं,
पर है वो टेढ़ा बड़ा
मुझसे ही कहता है...!
तुम्हें खाने को अनाज नहीं..?
भला मुझे निकालकर
क्या खाक खिलाओगी....?
और मुझे भूखे रहने की आदत नहीं
गुस्से में मार दूंगा अगर किसी को
मेरी हत्या,हत्या कहलाएंगी,
पर तेरी काले कोट में छिप जाएगी।
बाकियों को तो दे रखे हे हत्या का हथियार,
पर मुझे पकड़ ले जाओगे..!;
अगर कुछ बोला मैं खिलाफ तुम्हारे,
लगाके देशद्रोह का इल्जाम...!
बना दोगे लोकतंत्र का हत्यारा बड़ा..!
फिर भी तुम नहीं मानोगे
करवाओगे जबरदस्ती मुझसे
अपनी बात मनवाओगे,
जो ना मानी तुमरी मैंने,
बिन मौत मर जाउंगा।
या हाथ पर हाथ धर कर,
किसी कोठरी में फेंकवा दिया जाउंगा..!
फिर भी नहीं मानोगे तुम..?
भेज के अंध भक्तों की टोल
चौराहों में खून ही खून फैलावगे
युवाओं को कर अंधा
सिस्टम के गंदे बोल सिखाओगे
हां मैं आहत हूं
नजर में भले ही तुम्हारी एक छोटा अदना-सा हाथी हूं,
पर बात पते की करता हूं..!!
रहूं किताबों में सुरक्षित बनके छोटा सा हाथी
दुनिया जहान के षड्यंत्रों से दूर
शांति और सुख से भरपूर
कह लो कायर भले तुम मुझे
पर मेरे अंदर की दुनिया तुमसे लाख भली है
अनु 🍁 🍂🍁
बुधवार, 14 फ़रवरी 2018
वैलेंटाइन-डे
ना जाने किस पाश्चात्य प्रभाव भी आकर
प्रेम दिवस के नामकरण करते चले गए
कहानी संग्रह पंखुड़ियाँ (24 लेखक एवं 24 कहानियाँ )
कहानी संग्रह पंखुड़ियाँ (24 लेखक एवं 24 कहानियाँ )
मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018
सांप्रदायिक उन्माद
पकड़ो..! काट डालो..!!!
...लो बचने न पाये...!
जलाओ उसे .!!
फ़र्क़ क्या पड़ता है?
छोड़ो !
कौन......?
रिश्ते गिनने लग गये.....!
तो हो गयी
ख़ून-ख़राबे की होली..
मगर आज का अकाट्य सत्य
सत्य जो दिखता है
सत्य जो रुलाता है
सत्य जो पूछता है
कहां खड़े हो आज तुम
इतना गुस्सा
इतना स्वार्थ
कि अपनी आत्मतुष्टि के लिए
अपनी ही गली में
लाल रंग फैलाते हो
अट्टहास!!
लो ले लिया पूरा बदला
मुझे देश-दुनिया से क्या
मैं जीता हूँ
अपने धर्म और समाज के नाम पर
ख़ून बहे तो बहे
लोगों के घर जले तो क्या
मैं नहीं झुकनेवाला
गलियों में
धर्म के नाम पर कत्लेआम
हो रहे हैं
भाई...अब तो डर लगता है
इंसान होने से
डर लगता है अपनी
ज़ात बताने से
न जाने कौन कब कहां
बैठा हो अंधभक्ति के साथ
और काट दे मेरा गला
तुमने ...हमने.....???
चित्र साभार : गूगल
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आज फिर तुम साथ चले आए घर की दहलीज़ तक..! पर वही सवाल फिर से..! क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़ विलीन हो जाते हो इन अंधेरों मे...
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कभी चाहा नहीं कि अमरबेल-सी तुमसे लिपट जाऊँ ..!! कभी चाहा नहीं की मेरी शिकायतें रोकेंगी तुम्हें...! चाहे तुम मुझे न पढ...