छोड़ आई हूं,
सीलन से भरी
घुटती वो रातें,
जहां हर रात,
रिश्तों का मेरे,
दाह-संस्कार करते हो,
मेरी खिलखिलाती हंसी पर,
राक्षस बन प्रहार करते हो,
सिर्फ़
किचन और देह से जुड़ा
नहीं हे ये रिश्तों का गणित,
मेरी मन की बगिया,
तुम्हारे अनगिनत स्पर्शो,
में झांकते हुए जीवन
का प्रत्युतर चाहती है,
पर तुमने.......!!!
अपने हिस्से में
कभी मुझे बसने ही नहीं दिया,,
हर बार रखा,
किसी किराएदार की तरह,
और मेरे अंतर्मन को
भेदते रहें,
नुकीले दांतो के
शब्द बाण की तरह...!!
अपनापन तो कभी, देखा ही
नहीं तुम्हारी आंखों में,
देह का विन्यास ,
रिश्ता नहीं बनाता है..!!!
अनु,🍂🍁
सीलन से भरी
घुटती वो रातें,
जहां हर रात,
रिश्तों का मेरे,
दाह-संस्कार करते हो,
मेरी खिलखिलाती हंसी पर,
राक्षस बन प्रहार करते हो,
सिर्फ़
किचन और देह से जुड़ा
नहीं हे ये रिश्तों का गणित,
मेरी मन की बगिया,
तुम्हारे अनगिनत स्पर्शो,
में झांकते हुए जीवन
का प्रत्युतर चाहती है,
पर तुमने.......!!!
अपने हिस्से में
कभी मुझे बसने ही नहीं दिया,,
हर बार रखा,
किसी किराएदार की तरह,
और मेरे अंतर्मन को
भेदते रहें,
नुकीले दांतो के
शब्द बाण की तरह...!!
अपनापन तो कभी, देखा ही
नहीं तुम्हारी आंखों में,
देह का विन्यास ,
रिश्ता नहीं बनाता है..!!!
अनु,🍂🍁